Friday 19 August 2011

वो चंद तस्वीरें और कुछ अनपढ़े से ख़त.....

वो चंद तस्वीरें और कुछ अनपढ़े से ख़त....
आज भी तेरी खामोशी का राज़ बयान करते हैं.....

जी चाहता है उन अनपढ़े खतों औरअनदेखी तस्वीरों पर एक नज़र डालूँ.....
मगर दिल सिहर जाता है, जज़्बात उफनने से डरते हैं.....

वो चंद तस्वीरें और कुछ अनपढ़े से ख़त....
आज भी तेरी खामोशी का राज़ बयान करते हैं.....

एक लम्हे की बेकरारी कहीं उम्रभर की बेचैनी न बन जाए,तेरी अदा कहीं हया न बन जाए.....
अब वो राहगीर भी दूसरी डगर से गुज़रते हैं.....


वो चंद तस्वीरें और कुछ अनपढ़े से ख़त....
आज भी तेरी खामोशी का राज़ बयान करते हैं.....

शायद मैं समझा न सकूँगा उन्हें सबब उनकी आवारगी का.....
क्यों वो खोये- खोये से हैं, डरे- सहमे से आहें भरते हैं.....


वो चंद तस्वीरें और कुछ अनपढ़े से ख़त....
आज भी तेरी खामोशी का राज़ बयान करते हैं.....

एक एहसान तू मुझपे कर, खुदा के वास्ते ही सही.....
गर चाहती है सलामती मेरी...
मेरे दर से वो तस्वीरें, वो ख़त लेजा, उन्हें देख अब ये अरमान पल-पल मरते हैं.....


वो चंद तस्वीरें और कुछ अनपढ़े से ख़त.....
आज भी तेरी खामोशी का राज़ बयान करते हैं.....
___________________________प्रमोद कुमार सोरौत.

Monday 25 April 2011

वो चले गए

जिनकी उंगली पकड़कर चलना सीखा था मैंने कल...
वो अक्सर देखते होंगे आसमान से मेरा हर पल...
उनकी हर याद है आज भी इस सीने में...
वो जिंदा नहीं मगर उनका एहसास है मेरे जीने में...

उनकी,बस यादें रह गयी हैं इस चिलमन में...
किधर ढूँढू उन्हें मैं,रहता हु इस उलझन में...

उनकी खुशबू को हर हवा के झोंके में महसूस करता हूँ...
ये झोंका गुज़र ना जाए,बंद कर दरवाज़ा खुशबुओं को महफूज़ रखता हूँ...

हर आलम,हर मंज़र,हर महफ़िल में उनकी कमी सी है...
जाने क्यों राह देखती आँखों में सहर से नमी सी है...

निगाहों को इंतज़ार रहता है हर पल उनके आने का...
कहते है लोग जाने वाले नहीं आते,क्या करे ज़माने का...

सुनता रहता हूँ कि उम्मीद पर दुनिया कायम रहती है...
लेकिन अब तो उम्मीद भी दम तोडती नज़र आती है,आँखें बहती रहती है...

जब वो थे,जीवें में उत्साह था...
हर तरफ झरनों कि गूँज थी,ख़ुशी का प्रवाह था...
आज वो नहीं है,ख़ुशी का प्रवाह टूट गया...
जैसे कोई लुटेरा बसने से पहले हमें लूट गया...

जब वो दुनिया छोड़कर चले,एक आंसू लुढ़ककर आँखों से बह गया...
दुख का पहाड़ तो इस दिल पर भी टूटा था,पर जज्बातों को थामकर मैं सब सह गया...

जब जनाज़ा उठा उनका,सब्र का बाँध टूट गया...
आंसुओं का सैलाब जो दफ़न था,फूट गया...

उस रोज़ इतने आंसू गिरे कि धरती का कलेजा भी नाम हो गया...
एक शख्स जो कुछ लम्हों पहले हमारे साथ था,आज दुनिया से कम हो गया...

आसमा भी खूब गरजा,बादल भी उस रोज़ खूब रोए...
एक वो दिन था,एक ये दिन है हम पूरी नींद भर न सोए...

सुना है तारे बन जाते हैं लोग,जग से जाने के बाद...
अक्सर रातों को देखता हूँ आसमान चाहत-ए-दीदार में___________________________________________प्रमोद सोरौत.
                 काश वो मेरे होते
एक आरज़ू है उनके दिल में घर करने की...
उनकी बाहों में जीने की,उनके आघोष में मरने की...

रह-रह कर दिल आहें भरता है उनके नाम की...
जब वो ही ग़ौर न फरमाएं तो वफ़ा किस काम की...

चाहत तो हमारी भी है की हम इज़हार करें...
डरते है मगर कहीं ऐसा न हो की इनकार वो करें...

जितनी चिंता करता हूँ मैं उनके सुख की...
उतनी ही सिलवटें आ जाती है माथे पर दुःख की...

उनके लफ़्ज़ों की गूँज आ जाती है घूम-फिरकर फिर से कानों में...
बदल गए हैं वो,भूल गए है वो,लेकिन न बदले उनके लफ्ज़ इतने सालों में...

इतनी तड़प मिली है हमें तन्हाई से...
सहम जाते हैं अपनी परछाई से...

वो मेहरबान हो जाते तो हम भी ज़िन्दगी जी लेते...
उनकी खातिर हद से गुज़रना क्या,हम तो ज़हर पी लेते...

जब उन्होंने ठुकरा कर हमें पराया कर दिया...
हमने ओढ़ कर हया की चादर, उन्हें हमसाया कर दिया...

सुलगती आंच पर तो सब हाथ सेकते हैं...
मरने के बाद जनाज़े पर फूल फेंकते हैं...

अश्कों की स्याही की कालिख से अब तो मुखड़ा स्याह रहने लगा है...
कही काला करवा के आया है मुँह,अब ये ज़माना कहने लगा है...

अब तो सजदे में भी झुकने की हिम्मत नहीं होती...
डर है,कहीं खुदा पूछ बैठा काले मुँह से झुकने में ज़िल्लत नहीं होती...

उनको देखा करता था अक्सर शब् में डूबता सूरज देखते...
दिल चाहता है मैं भी किसी शाम का मंज़र होता...
मैं भी किसी शाम का मंज़र होता...
उनके दिल में न सही उनकी नज़र में रहता____________________________प्रमोद सोरौत.

Sunday 27 March 2011

                     अरसे  बाद आज वो फिर दिखे 

अरसे बाद आज वो दिखे ,फिर ओझल हो गए...
बहुत करीब आए वो,लेकिन फासले दरमियां हो गए...

एक झलक दिखा वो सूरत अपनी,चले गए...
पीछे छोड़ गए वो अपनी यादो के बादल घने...

एक बार तो ऐसा लगा जैसे भ्रम है कोई...
कुछ यूँ महसूस हुआ जैसे अभी तक ये अँखियाँ है सोई...

जब पहली नज़र देखा ,विश्वास न हुआ आँखों पर...
टकटकी लगाईं तो मालूम हुआ ये वही बहार है शाकों पर...

दिल डरपोक उनके करीब जाने से कतराता रहा...
अरमानो का क़त्ल हुआ दिल में,मन घबराता रहा...

उनके करीब न जाना भी एक मजबूरी थी...
कहीं जान कर भी अनजान कह दे वो,इसलिए ये दूरी थी...

एक दफ़ा तो नैन उनके भी चार हो गए...
हमें लगा कि उन्हें हमारे दीदार हो गए...

लेकिन जब मुंह उन्होंने फेर लिया...
अजीब सी उदासी ने हमें घेर लिया...

उन लम्हों में एक अजीब सा इत्तेफाक था...
मूक रह गया मैं,कुछ देर पहले बेबाक सा था...

एक लम्हा ऐसा भी था जब मैं उनकी हर बात मैं था...
हर मुस्कराहट,हर अदा,हर शोखी,हर खयालात में था...

आज ना जाने क्यों वो इतने मग़रूर हुए...
देख कर भी अनदेखा किया,मीलो हमसे दूर हुए...

ये निगाहें भीड़ में उनका पीछा करती रही...
महरूम रहा उनके दर्शन से,पल-पल ये साँसे मरती रही...

जब वो चले छोड़ कर तनहा,सोचा,शायद हमारा प्यार ही कम था...
ना कोई उम्मीद थी,न रौशनी,बस था तो एक चेहरा जो अश्कों से नम था...

उनसे आज मुलाक़ात हो जाती तो हमें कोई ग़म न होता...
हमारी अर्जी सुन लेते वो तो दर्ज़ा उनका खुदा से कम न होता...

हज़ारों शिकवे थे,अथाह गिले,सैंकड़ो शिकायतें थी...
उनका दरबार काश सजा होता,शायद हमारे लिए रियायतें थी...

सभी दर्द,किस्से अनकहे से, दफन हो गए सीने में...
पल पल ज़िन्दगी से शिकवा है,अब क्या रखा है जीने में...

इतना ग़ुरूर तो शायद चाँद को भी न होगा अपने हुस्न पर...
एक वो है जो मग़रूर बन बैठे_______________प्रमोद सोरौत.....

Friday 25 March 2011

                  बदमाश नज़रें

नज़रें बेपरवाह इस कदर हुई...
कोई सरहद न उन पर रही...

तकती रही लगातार वो एक ही हुस्न...
हुस्न की तस्वीर में रंग भरती कभी,कभी खुद रंगीन हुई...

उन्हें झूठ लगा मेरा प्यार...
ज़माने ने देखा जब लेकिन नजरो को बहते...
उन्होंने भी महसूस किया अश्को से स्याही नमकीन हुई...

वो पहेलियाँ जो आज तक उन्सुल्झी थी...
ये नज़रें न करती कोशिश तो गुत्थी रह जाती...
मगर जब फैसले का दौर आया...
कटघरे में खुद नज़रे ही सवालों में उलझी थी...

वो बेसुध थी,बेहोश थी,कुछ न कहने की हालत में थी...
फिर भी कोतवाल (मन) उन्हें घसीटता रहा...
सज़ा  मिली उन्हें , मगर कहा वो सज़ा पाने लायक थी...

उनमें हज़ारो सपने निशब्द विचरण करते आए नज़र...
कभी भटकते थे आशियाने को...
लेकिन जब खुली रही आँखें,बेआसरा होकर गए सपने वहा से गुज़र...

वेदनाओं की दस्तक दिल में होने से अश्कों ने उनका चेहरा सबसे पहले दिखा...
कुछ अनकही सी बातें थी जिन्होंने दिल पे फ़साना दर्द-ए-दिल का लिखा...

जब बरसी ये नज़रें एक सैलाब आ गया...
न मालूम कितने ही सपने डूबे इसमें और कितने अरमानो को बहा गया...

शर्म-ओ-हया को गहना समझा हमने नज़रों का...
नासमझों ने खता समझा उठना नज़रों का...

ना ये नैन बदमाशी करते न हम बेशर्मो की फेहरिस्त में शुमार होते.....
__________________________प्रमोद सोरौत.....


Monday 28 February 2011

ज़िन्दगी की राहों में.....

इन्तेहा हुई इंतज़ार की मगर ज़िन्दगी के दर्शन हो गए
अक्सर देखा किए जिन्हें हम ख़्वाबों में आज वो मेरे हमसफ़र हो गए...

हम तो आस छोड़ चले थे ज़िन्दगी की
आरज़ुओं के इस शहर  में  तनहा इस कदर हुए...

जब ज़िन्दगी ने दी दस्तक हमारे दरवाज़े पर दबे पाँव
हम किसी भंवर की तरह उसे पाने के लिए हद से गुज़र गए...

ना मालूम था हमें क्या होता है मौत का डर
लेकिन जब चली ज़िन्दगी छोड़ के दामन हमारा हम सिहर गए...

उस ज़िन्दगी ने ना जाने कितने ही खेल खेले हैं संग मेरे
खुशनसीब हैं वो शख्स जो इस मुसीबत से तर गए...

मैंने गंवाए है अनगिनत पल ज़िन्दगी के लम्हों की गिनती में
वो क्या ख़ाक समझेंगे मेरा इंतज़ार जो वक़्त से पहले लौटकर घर गए...

सुना है मैंने लोगो की ज़ुबानी बहुत लम्बी है यह जिंदगानी
अगर किसी ने जिए हैं लम्हें ,गिन गिन के तारे उनके लिए तो ये बरस,दिन चार हो गए...

पहलू ज़िन्दगी का जिंदादिली मानते है जो लोग
चंद लम्हे ख़ुशी के उनकी ज़िन्दगी का आधार हो गए...

कुछ जीते हैं ज़िन्दगी शराब की तरह,अरसे गुज़ार देते हैं
थोड़ी सी पी ली,जब ख़त्म होने लगी माया,दूसरों के जीवन पे उधार हो गए...

मैंने देखा है दुनिया में लोगो को कराहते,तड़पते ज़िन्दगी के लिए
जिनपे रहमत हुई खुदा की,उनके लिए लम्हे ज़िन्दगी के उपहार हो गए...

मेरी बेकरारी क्या समझेंगे वो ज़ालिम
जिनके नज़र मिलते ही इकरार हो गए...

मैंने समझा उसे ज़िन्दगी,ये मेरी जुर्रत थी
उसने इसे खता समझा,मीलों के फासले दरमियां हुए और सदियों लम्बे ये इंतज़ार हो गए...

___________________________________________________प्रमोद सोरौत.....



Friday 25 February 2011

ये आँखें मरवाएंगी.....

इन पलकों की कतारों में बसाया है उनको मग़र...
डरता हूँ कहीं आँखें खुली तो उन्हें खो न दूं...
एक सैलाब दफ़न है इस दिल में बरसों से...
ज़रा भी हलचल हुई तो रो ना दूं...

दिल की बात जो जुबां कहने में लडखडाती है...
ये आँखें ही तो है जो पल में सब बयान कर जाती हैं...

किसी को देखकर खुश होना, किसी की अदाओं पे मर मिटना...
सब आँखों का काम होता है...
मग़र आँखों को कोई नही पूछता , हमेशा दिल का नाम होता है...

दिल तो बस तमन्ना करता है, मुकाम तक पहुँचाना तो आँखों का काम होता है...
रात भर जगती है आँखें किसी की याद में, और बेचारा दिल मुफ़्त में बदनाम होता है...

जब सामने आते है वो, तो दिल सहम जाता है...
फिर चुपके से आँखें अपना काम कर जाती है...
और झुक के वो अदा से, हया से सब बयां कर जाती है...

ये बनती है गवाह अश्कों के सैलाब की...
कभी ख़ुशी की बारिश की, कभी रौशनी के सैलाब की...

आगाज़ से लेकर अंदाज़ तक,अंदाज़ से लेकर अंजाम तक इनका ही काम रहता है...
सब तो कहते है छुप-छुप के, ये आशिक सरेआम कहता है....

ये आँखें मरवाएंगी.....
ये आँखें मरवाएंगी.....

________________________________________प्रमोद सोरौत.....